फिर क्यों नहीं... - Deepstash
फिर क्यों नहीं...

फिर क्यों नहीं...

ये दिन अब थोड़े मायूस से लगते हैं, जरा देखो इन्हें ध्यान से ये अब फिर क्यों नहीं हंसते हैं

क्यों दोपहर की ये धूप,शाम की नमी में बदल जाती है

क्यों होकर परेशान, क्यों इतना मशरूफ रहते हो, मत हो उदास आखिर तुम भी तो किसी के चहेते हो

बेजार मन को भूल कर, लुफ्त उठाओ इस क्षण का

ये दुनिया उतनी भी बुरी नहीं जितना तुमने इसे बताया हैं,

अगर है यहां एक तरफ वेदना तो दूसरी तरफ खुशी का साया है

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